MUKESH HISSARIYA,PATNA

Tuesday, October 20, 2009

शादी एक समझौता

जय माता दी,
आज सुबह फिर से पेज ३ पर तलाक़ की एक खबर ने फिर से ये सोचने पर मजबूर कर दिया की क्या शादी एक समझौता है.लेकिन फिर से वही सवाल कौंधता है की अगर ये समझौता होता तो आज तक ये सफ़र कहीं न कहीं जाकर रुकता जरुर.इसी उधेरबुन में नेट पर मिल गए अपने मटुकनाथ .इस मैटर पर उनका विचार है-

पत्नी और मुझमें तालमेल नहीं था. लेकिन जब हमलोग विवाहित हो ही चुके थे, तो एक समझौता के साथ सामान्य सुखी दाम्पत्य जीवन शायद जी सकते थे. लेकिन पत्नी के मैके वालों के निरंतर मूढ़तापूर्ण हस्तक्षेप ने हमलोगों को मिलने और समझौते के साथ जीने नहीं दिया. उनकी एक ही शर्त थी कि मेरा कहीं प्रेम न हो, चाहे पत्नी से प्रेम न भी हो तो चलेगा. यह मेरे लिए घुटन भरा था. प्रेम-प्यासी मेरी आत्मा चीत्कार कर उठी थी. किसी भी कीमत पर गुलामी मुझे सह्य नहीं थी. आजादी की साँस लेते हुए जिनके साथ समानता और समझदारी के साथ सुन्दर जीवन जी सकूँ, ऐसी स्त्री की तलाश थी. दैवयोग से अंधेरे जीवन में रोशनी बनकर जूली आ गयी. अपने कदम को न्यायोचित ठहराने केे लिए पत्नी की किसी कमी को उघाड़ने में मेरी दिलचस्पी जरा भी नहीं है. कमियाँ दोनों में रही होंगी. कमियाँ मनुष्य में होती ही हैं.

Sunday, October 18, 2009

मार्मिक एवं संवेदनपूर्ण,

जय माता दी,
आज सुबह हिंदुस्तान दैनिक के पेज ३ के एक समाचार ने झकझोर के रख दिया है.बख्तियारपुर के एक बुजुर्ग दंपत्ति ने बेटे बहूँ के वैवाहर से तंग आकर गंगा के किनारे जहर खाकर जान दे दी .
शाश्‍वत शेखर जी की बातो को आपके साथ शेयर कर रहा हूँ :-

३ साल पहले की बात है| मैं एक मित्र को आनंद विहार बस अड्डे ग्वालियर की बस पर चढाने आया था| मित्र के पास एक भारी बक्सा था, जिसे बस पर चढाने के लिए एक बुजुर्ग सामने आया जो बमुश्किल यह काम कर सका| बस के जाने के बाद मैं उस बुजुर्ग से मिला|
"बाबा, ये काम क्यूँ करते हो? कुछ और काम क्यूँ नही देख लेते, इस उम्र में यह काम ठीक नही है|"

बुजुर्ग से बीस मिनट बात हुई| अपना नाम सिंघासन बताया| सासाराम, बिहार के किसी गाँव का था, लम्बी बीमारी के बाद बीवी चल बसी, बेटे ने फिरोजाबाद फैक्ट्री में नौकरी मिलने के बाद बाप को नही पुछा| गाँव में कुछ रोजगार न था, इसलिए दिल्ली आ गया|

"चाय बना लेते हो बाबा?"
"हँ बाउजी|"
"मेरे पहचान के एक चाय वाले हैं जिन्हें चाय बनाने, देने के लिए एक आदमी की तलाश है| रहने का इन्तजाम भी कर देंगे| जाओगे वहां?"
"काहे ना बाउजी, हमके त बस जिनगी बसर करे के बा|"

उसी शाम मैं सिंघासन को चाय वाले अंकल से मिलाने लाया| अगले दिन से सिंघासन काम पर लग गया|
हमें लगता है की हमें भी इसके लिए कुछ प्रयास करना चाहये.

Friday, October 16, 2009

CHOICES

Life always gives us two choices when we are faced with troubles [1] Run from it. [2] Learn from it.

Troubles and hurdles in our life are practical lessons designed by God solely for our purpose of evolving to better humans by learning through the mistakes. If we run from a problem we will always remain failures as we have never learnt to overcome the same hurdle. Hence accept the troubles as gift of God and learn from it to be better equipped in life for future and evolve as a better being.

दौड

शहर कि इस दौड मॆ दौड कॆ क‌रना क्या है..
अग‌र यहि जिना है दॊस्तॊ, तॊ फिर म‌रना क्या है..
पहले बरिश मै ट्रैन् लॆट हॊनॆ कि फिक्र है..
भुल गयॆ भिगतॆ हुऎ टहलना क्या हॊता है..
सिरिअल्स कॆ किरदारॊ का सारा हाल है मालुम..
पर मा का हाल पुछनॆ कि पुरसत कहा है..?
अब रॆत पॆ नन्गै पैर ट‌ह‌ल‌तॆ क्यॊ नही..?
108 है चैनल प‌र‌ दिल बहलतॆ क्यॊ नही..?
इन्ट‌र‌नॆट पॆ सारी दुनिया सॆ तॊ ट‌च मैन् है
लॆकीन‌ पडॊस मै कौन रहता है जानतॆ तक नही.
मॊबाईल,लैन्डलाईन स‌ब की भरमार् है..
लॆकीन‌ जीगरी दॊस्त तक पहुचॆ ऐसॆ तार कहा है..?
कब डूबतॆ हुऎ सुरज कॊ दॆखा था याद है.??
कब जाना था वॊ शाम का गुजरना क्या है..??
तॊ दॊस्तॊ शहर कि ईस दौड‌ मै दौड कॆ करना क्या है..
अग‌र‌ यही जीना है तॊ मरना क्या है.

Thursday, October 15, 2009

अनकही

एक मानव श्रेष्ठ ने क्या खूब कहा है,"चीज़ों को बदलने के लिए, चीज़ों को समझना पड़ता है और इस प्रक्रिया में मनुष्य खुद भी बदल जाता है"। दुनिया को बदलने के लिए, इसे समझा जाना आवश्यक है।

रिश्ता

जय माता दी,
वन्दना अवस्थी दुबे,सतना, म.प्र., जी का ब्लॉग पदने की बाद हम हिंदुस्तानिओं और विदेशयों में जो मूल निकल कर आया वो है की हर चीज को हमलोग दिल से लेतें हैं. वन्दना जी की लाइनों को आपके साथ शेयर कर रहा हूँ दिवाली की सफाई के मौके पर -


मन में कोई शर्मिंदगी भी नहीं थी, कबाड़ न फेंक पाने की। पता नहीं क्यों सामान सहेजते-सहेजते मुझे रिश्ते याद आने लगे.....................

हमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से.....लगा ये विदेशी क्या जाने सहेजना ...... न सामान सहेज पाते हैं न रिश्ते......

"दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं "

Tuesday, October 6, 2009

अच्छी सोच

‘Keep a green tree in your heart, the singing bird will surely come !!

इसी अच्छी सोच के साथ हमें हर दिन की शुरुआत करनी चाहीये.

नक़ल

जय माता दी,
आज का दिन मेरे लिए बहुत बढिया हैं .ऑरकुट पर मुझे एक मार्गदर्शक मित्र मिली(Dr. Meera Shukla) .संयोग ऐसा हुआ की मेरे साथ उनका भी सोशल वेलफेयर में इंटेरेस्ट है.पहली बार उनके प्रोफाइल में मुझे जो अच्छा लगा उसे इस उम्मीद से आपलोगों के साथ बाँट रहा हूँ की आपलोगों को भी अच्छा लगेगा .

मेरी रगों में जो लहू है , वो देश की अमानत है ...
जहाँ जहाँ हो जरूरत , इसे वसूल कर लेना .....

साथियो साथ दो चलना हमें आता है ,हर आग से वाकिफ है जलना हमें आता है......




रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो,
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो.
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी,
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो.
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें,
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो.



बंद हाथ तुम आये हो दुनिया में क्या लाये हो

हाथ पसारे जाओगे दुनिया से क्या ले जाओगे

जीता-हारा,खोया-पाया ,सब का सब रह जायेगा

साथ नहीं कुछ जायेगा,सब का सब मिट जायेगा

भूली बिसरी यादो को केवल यही छोड़ कर जाओगे

नाम ही नाम रह जायेगा तुम पंचतत्व में मिल जाओगे



हमें Dr. Meera Shukla जी का धन्यवाद करना चाहेया .