रिश्ता
वन्दना अवस्थी दुबे,सतना, म.प्र., जी का ब्लॉग पदने की बाद हम हिंदुस्तानिओं और विदेशयों में जो मूल निकल कर आया वो है की हर चीज को हमलोग दिल से लेतें हैं. वन्दना जी की लाइनों को आपके साथ शेयर कर रहा हूँ दिवाली की सफाई के मौके पर -
मन में कोई शर्मिंदगी भी नहीं थी, कबाड़ न फेंक पाने की। पता नहीं क्यों सामान सहेजते-सहेजते मुझे रिश्ते याद आने लगे.....................
हमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से.....लगा ये विदेशी क्या जाने सहेजना ...... न सामान सहेज पाते हैं न रिश्ते......
"दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं "


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