...एक साम्प्रदायिक कविता
जय माता दी ,
अनायास अल्मोरा के दर्पण साह 'दर्शन' के चार लाइनों पर नज़र परी जो आपके लिए हाज़िर है
मैं हिन्दू हूँ
मैं मुस्लिम से नफरत करता हूँ.
मैं सिखों से भी नफरत करता हूँ,
मुस्लिम और सिख एक दूसरे से नफरत करते हैं,
दुश्मन का दुश्मन, 'दोस्त' होता है,
दोस्त का दुश्मन, 'दुश्मन' ,
इस तरह,
मैं हिन्दुओं से भी नफरत करता हूँ.
दुनियाँ की महान नफरतों,
...अफ़सोस !!
तुम्हारी वजह से,
मेरी कविता में 'प्रेम' कहीं नहीं है.
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