MUKESH HISSARIYA,PATNA

Wednesday, May 5, 2010

जख्म परोसा चुपके से


जय माता दी,
संसार के प्रत्येक अभिभावक जितना ही अपनी संतान में विलक्षणता के लिए लालायित रहते हैं,उतना ही सबके सम्मुख उसे सिद्ध और प्रस्तुत करने को उत्सुक और तत्पर भी रहा करते हैं.ऐसा नही है की सिर्फ अभिभावक ही ऐसा सोचते और करते है उनकी संतान की भी सोच इससे उपर है .पत्रकार निरुपमा पाठक ने भी अपने ऑरकुट अकाउंट में Five things I cant live without के जवाब मे लिखा है -Not five Things rather five people(my family)......I m one of them.परिवार के प्रति उसकी सोच और प्यार की बानगी आप खुद देखए
जहाँ तक क्षमताओं की बात करें,निश्चित रूप से प्रकृति/ईश्वर ने स्त्रियों को मानसिक रूप से पुरुषों की तुलना में अधिक सबल और सामर्थ्यवान बनाया है.श्रृष्टि रचना का श्रोत पुरुष अवश्य है परन्तु श्रृष्टि की क्षमता स्त्रियों को ही है..संभवतः इसी कारण ईश्वर ने स्त्रियों को शारीरिक बल में पुरुषों से कुछ पीछे कर दिया,क्योंकि यदि दोनों एक साथ स्त्रियों को ही मिल जाता तो इसकी प्रबल सम्भावना थी कि संसार में पुरुषों की स्थिति अत्यंत दयनीय होती.अगर ऐसा नही होता तो ये समाज पुरुष प्रधान समाज नही हो पाता.और अगर ये समाज पुरुष प्रधान समाज नही होता तो आज निरुपमा पाठक हमारे बीच होती . आज की जो स्थिति है उससे तो ये लग रहा है की समाज में अब माँ ,बाप और भाई ही लड़की का भविष्य तय करेंगे लड़की को अपना निर्णय और भविष्य तय करने का कोई अधिकार नही है अगर कोई लड़की गलती करेगी तो उसका भी हाल निरुपमा पाठक वाला होगा.
सच तो यह है कि हम एक नकली समाज हैं जो भ्रम में जीता है . और माता-पिता इसी समाज का हिस्सा. ऐसे मामलों में वे खुद को ठगा हुआ ही नहीं मृत मान लेते हैं या मार डालते हैं.निरुपमा पाठक के परिवार ने समाज के भय से जो जख्म चुपके से परोश दिया है उसने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कोई दूसरा नही हमलोग ही ऐसे घटनाओं के लिए जिम्मेदार है.
खुदा न खास्ते कभी किसी के अंतिम संस्कार में जाने का मौका मिले तो ये तय है अंतिम संस्कार में शामिल होने वाला हर सख्स वंहा से लौटने के बाद अपने आप को बदलने का कसम खाता है कुछ दिनों तक गाड़ी ठीक चलती है फिर वही घोडा और वही मैदान .
इसी तरह कुछ दिनों तक आंसू बहाने के बाद हम (समाज )फिर एक नई घटना की तैयारी में लग जायेंगे.और भूल जाएँगे सारी पिछली घटनाओं को .
भगवान निरुपमा की आत्मा को शांति दें.

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