माँ वैष्णो देवी सेवा समिति ,पटना
जय माता दी,
08/11/2009,रविवार को हमलोगों ने "पीड़ित मानव की सेवा "को अपना लक्ष्य मानकर माँ वैष्णो की कृपा से एक मंच {माँ वैष्णो देवी सेवा समिति ,पटना } की शुरुआत की है .15 लोगों की समिति ने ये निर्णय लिया है की हमलोग 16/03/2010 को माता का एक जागरण पटना में करवा कर अपने सारे लक्ष्यों को पाने की कोशिश की शुरुआत करेंगे '। इस ब्लॉग को पड़ने वाले हर लोगों का तहे दिल से इस समिति में हार्दिक स्वागत है । आपका हर एक सुझाओं हमारे प्रयासों को मजबूती देगा ।इस समिति से जुड़ने की लिए कभी भी आप फ़ोन कर सकतें हैं।
मुकेश कुमार हिसारिया ,पटना -9835093446
वैष्णो देवी की कहानी
आपने जम्मू की वैष्णो माता का नाम अवश्य सुना होगा। आज हम आपको इन्हीं की कहानी सुना रहे हैं, जो बरसों से जम्मू-कश्मीर में सुनी व सुनाई जाती है। कटरा के करीब हन्साली ग्राम में माता के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनके यहाँ कोई संतान न थी।
वे इस कारण बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। अन्य कन्याएँ तो चली गईं किंतु माँ वैष्णो नहीं गईं। वह श्रीधर से बोलीं-‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुँचा दिया। लौटते समय गोरखनाथ व भैरवनाथ जी को भी उनके चेलों सहित न्यौता दे दिया। सभी अतिथि हैरान थे कि आखिर कौन-सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? श्रीधर की कुटिया में बहुत-से लोग बैठ गए। दिव्य कन्या ने एक विचित्र पात्र से भोजन परोसना आरंभ किया। जब कन्या भैरवनाथ के पास पहुँची तो वह बोले, ‘मुझे तो मांस व मदिरा चाहिए।’ ‘ब्राह्मण के भंडारे में यह सब नहीं मिलता।’ कन्या ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया। भैरवनाथ ने जिद पकड़ ली किंतु माता उसकी चाल भाँप गई थीं। वह पवन का रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरव ने उनका पीछा किया। माता के साथ उनका वीर लंगूर भी था। एक गुफा में माँ शक्ति ने नौ माह तक तप किया। भैरव भी उनकी खोज में वहाँ आ पहुँचा। एक साधु ने उससे कहा, ‘जिसे तू साधारण नारी समझता है, वह तो महाशक्ति हैं।’ भैरव ने साधु की बात अनसुनी कर दी। माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं।
वह गुफा आज भी गर्भ जून के नाम से जानी जाती है। देवी ने भैरव को लौटने की चेतावनी भी दी किंतु वह नहीं माना। माँ गुफा के भीतर चली गईं। द्वार पर वीर लंगूर था। उसने भरैव से युद्ध किया। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा तो माता वैष्णो ने चंडी का रूप धारण किया और भैरव का वध कर दिया।भैरव का सिर भैरों घाटी में जा गिरा। तब माँ ने उसे वरदान दिया कि जो भी मेरे दर्शनों के पश्चात भैरों के दर्शन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी। आज भी प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु माता वैष्णों के दर्शन करने आते हैं। गुफा में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं।
जम्मू में स्थित माँ वैष्णो देवी की महिमा अपरम्पार है । जो भक्त्त अपनी मुरादें लेकर मैया के दाराबार में पहुँचते है । भक्त्त वत्सला माता अपने भक्तो को पुत्रवत स्नेह करती है और मुरादें पुरी करती है । कोई भी भक्त्त माँ के दरबार से निराश नही लौटता है । माँ वैष्णो देवी 'त्रिकुट पर्वत' पर महाकली लक्ष्मी, और महासरस्वती के तीन पिंडो के रूप में विराज करती है । जहा हर साल बहुत श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते है और कठिन चढाई चढ़ते है ।
पृथ्वी पर अनेको बार अशुरों के अत्याचार हुए और उनके अत्याचारों के बोझ से जब पृथ्वी धँसने लगी तब तब दिव्य रूप में देवी शक्तियों ने अवतार लिया और पृथ्वी को भार मुक्त किया है । एक बार माँ लक्ष्मी, माँ कली, और माँ सरस्वती ने त्रेता युग में दत्यो का अत्याचार का अंत करने के लिए और संत जानो की रक्षा करने के लिए अपनी समस्त शक्तियों से एक दिव्या कन्या को उत्पन करने का निशचय किया । उनके नेत्रों से निकली दिव्या ज्योति से एक कन्या प्रकट हुई उसके हाथ में त्रिशूल और ओ शेर पर सवार थी । उस कन्या ने तीनो महा शक्तियों के तरफ़ देखकर कहा - हे महा शक्तियों आपने मुझे क्यों उत्पन किया है मेरी उत्पति का क्या प्रयोजन है कृपा करके मुझे बताइए ।
तब तीनो महा देवियों ने कहा - हे कन्या धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए हमने तुम्हे उत्पन किया अब तुम हमारी बात मानकर दक्षिण भारत में रतनाकर सागर की पुत्री के रूप में जन्म लो । वहा तुम भगवन विष्णु के अंश से उत्पन होओगी आत्म प्रेरणा से धर्म हित का कार्य ।
महादेवियो की अनुमती लेकर ओ दिव्य कन्या उसी क्षण रतनाकर सागर के घर गई और उनकी पत्नी के गर्भ में स्थित हो गई । समयानुसार उस कन्या की उत्पति हुई । उस कन्या का मुखमंडल सूर्य के सामान अद्भुत और अलौकिक था । रतनाकर सागर के उस कन्या का नाम त्रिकुटा रखा । थोड़े ही दिनों में त्रिकुटा ने अपने दिव्य शक्तियों से सभी ऋषियों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया अर्थात सभी ऋषि जन उसे दिव्य अवतार मानने लगे । त्रिकुटा भगवान् विष्णु की बहुत निष्ट और लग्न से पूजा करती थी इसी कारन उसे सब लोग वैष्णवी कह कर बुलाते थे । कुछ दिन और बीत जाने के बाद त्रिकुटा ने अपने माता पिता की अनुमति लेकर ओ तप करने समुन्द्र तट पर चली गई । वहा साध्वी का वेश बनाकर एक छोटी सी कुटी में रहने लगी ।
उन्ही दिनों श्री राम की पत्नी सीता का हरण करके रावन ले गया था । सीता खोज करते हुए एक दिन श्री राम जी अपनी वानर सेना सहित वहा पधारे और उस दिव्य कन्या को तप करते हुए देखकर बोले - हे सुंदरी वह कौनसा कारन है अथवा वह कौनसा प्रोयोजन है जिस कारन तुम इतना कठोर तप कर रही हो । श्री राम के पूछने पर त्रिकुटा ने अपने नेत्र खोलकर देखा तो श्री राम जी अपने अनुज लक्ष्मण और वानर सेना सहित खड़े है । उन्हें देखकर त्रिकुटा के हर्ष के सीमा न रही । वह प्रसन्न होकर प्रभु को प्रणाम करने के उपरांत वह विनीत भावः से बोली - आपको पति रूप में प्राप्त करना ही मेरी तपस्या का कारन है । अत: मुझे अपनाकर मेरी तपस्या का फल प्रदान करने की कृपा करे । तब भगवान् श्री राम जी के कहा - हे सुमुखी इस अवतार में मैंने पत्नीव्रत होने का निसचय किया है । अत : इस जन्म में तुम्हारी अभिलाषा नही पूर्ण कर सकता किंतु मुझे प्राप्त करने के उद्देश्ये से तुमने कठिन तप किया है इसलिए तुम्हे ये वचन देता हु की की सीता सहित लंका से लौटते समय हम तुम्हारे पास भेष बदलकर आयेंगे और उस समय तुमने हमें पहचान लिए तो हम तुम्हे अपना लेंगे ।
श्री राम जी अपनी सेना सहित लंका की ओर चले गए । लंका में उनका रावन से भीषण सग्राम हुआ और अंत में रावन की मृत्यु हो गई । उसके बाद सीता की अग्नि परीक्षा लेकर पुष्क विमान पर सवार होकर आ रहे थे तब उन्होंने विमान रोक कर सीता और लक्षमण से बोले - तुम येही ठहरो हम थोडी देर में आते है उसके बाद श्री राम जी ने एक वृद्ध साधू का रूप धारण कर त्रिकुटा के सामने पहुचे, त्रिकुटा उन्हें पहचान ना सकी तब श्री राम जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर बोले- हे कन्या पूर्व कथा नुसार तुम परीक्षा में असफल रही अत : तुम कुछ काल तक तप करो कलयुग में जब मेरा 'कालिका अवतार' होगा तब तुम मेरी सहचरी बनोगी, उस समय उत्तर भारत में मानिक पर्वत पर तीन शिखर वाले मनोरमा गुफा में जहा तीन महा शक्तियो का निवास है वहां तुम भी अमर हो जाओगी। तप करो महाबली हनुमान तुम्हारे पहरी होंगे तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर तुम्हारी पूजा होंगी । तुम 'वैष्णो देवी' के नाम से तुम्हारी जगत महिमा जगत विख्यात होंगी ।
108 Names of Maa Durga
Sr. No.
Name
Meaning
1
Akashagamini Flew in The Sky
2
Arogyada Granter of Good Health
3
Asurakshayamkari Reducer of The Number of Demons
4
Ataviduhkhandhara Rakshika Protector From Ignorance And Distress
5
Ayurdas Granter of Longevity
6
Balarkasadrushakara Like The Rising Sun
7
Bandhananashini Detacher of Attachments
8
Bhaktavatsala Lover of Devotees
9
Bhayanashini Remover of Fear
10
Bhootanushruta Well-Wisher of Bhootaganas
11
Brahmacharini Seeker of Brahman
12
Chandravispardimukha Beautiful Like The Moon
13
Chaturbhuja Four-Armed
14
Chaturvakttra Four-Faced
15
Daya Compassionate
16
Devi The Diety
17
Dhanakshayanashini Controller of Wealth Decrease
18
Dhanurdharini Holder of Bow
19
Dhruti Valiant
20
Divamalya Vibhooshita Adorned With Beautiful Garlands
21
Divyambaradhara Beautifully Robed
22
Durga The Inaccessible
23
Durga Remover of Distress
24
Durga Deity Durga
25
Hri Holy Chant of Hymns
26
Indradhwaja Samabahudharini With Shoulders Like Indra's Flag
27
Jaya Victorious
28
Jyotsana Radiant Like Flames
29
Kali Dark-Complexioned
30
Kali Goddess of Death
31
Kamacharini Acting On One's Own Accord
32
Kamsavidravanakari Threatened Kamsa
33
Kantha Radiant
34
Kanttadhara Holder of Shiva's Neck
35
Kaumaravratadhara Observer of Fasts Like Young Girls Do
36
Keyurangadadharini Bejewelled With Armlets And Bracelets
37
Khadgaketaka Dharini Holder of Sword And Shield
38
Khama Embodiment of Forgiveness
39
Kirti Famed
40
Krishna Sister of Krishna
41
Krishna Dark-Complexioned
42
Krishnachhavisama Like Krishna's Radiance
43
Kulavardhini Developer of The Race
44
Kumari Young Girl
45
Kundalapurnakarna Vibhooshita Wearer of Earrings Covering The Ears
46
Mahachakradharini Holder of Chakra
47
Mahakali Wife of Mahakala
48
Mahishasuranashini Destroyer of Mahisha
49
Mamsapriya Fond of Flesh
50
Mangalya Auspicious
51
Mati Wise
52
Mayoora Pichhavalaya Wearer of Peacock-Feathered Bangles
53
Mohanashini Destroyer of Desires
54
Mruthyunashini Destroyer of Death
55
Mukutavirajita Shining With Crown Adorned
56
Nagararakshika Protector of Land
57
Nandagopakulajata Daughter of The Nandagopa Race
58
Narayanavarapriya Fond of Narayana's Boons
59
Nitya Eternal
60
Padmapatrakshi Eyes Like The Lotus Leaf
61
Pankajadharini Lotus-Holder
62
Papadharini Bearer of Others' Sins
63
Papaharini Destroyer of Sins
64
Pashadharini Holder of Rope
65
Pashupriya Fond of All Beings
66
Patradharini Vessel-Holder
67
Peenashroni Payodhara Large Bosomed
68
Prabha Dawn
69
Prasanna Cheerful
70
Pravasarakshika Protector of Travellers
71
Purnachandra Nibhanana Beautiful Like The Full Moon
72
Putrapamrityunashini Sustainer of Son's Untimely Death
73
Rajyada Bestower of Kingdom
74
Ratri Night
75
Sagaragirirakshika Protector of Seas And Hills
76
Sandhya Twilight
77
Sangramajayaprada Granter of Victory In The War
78
Sangramarakshika Protector of Wars
79
Sankarshanasamanana Equal To Sankarshana
80
Santati Granter of Issues
81
Sarvakaryasiddhi Pradayika Granter of Success In All Attempts
82
Saukhyada Bestower of Well-Being
83
Seedupriya Fond of Drinks
84
Sharanya Granter of Refuge
85
Shatrusankata Rakshika Protector From Distress Caused By Foes
86
Shikhipichhadwaja Virajita Having Peacock-Feathered Flag
87
Shilathata Vinikshibda At Birth,Slammed By Kamsa
88
Shiva Auspicious
89
Shiva Shiva's Half
90
Shree Auspicious
91
Siddhi Successful
92
Surashreshtta Supreme Among The Celestials
93
Sutada Granter of Issues
94
Trailokyarakshini Protector of The Three Worlds
95
Tribhuvaneshwari Goddess of The Three Worlds
96
Tridashapujita The Goddess of The Celestials
97
Tridivabhavayirtri Goddess of The Three Worlds
98
Vapurda Granter of Beautiful Appearance
99
Varada Granter of Boons
100
Varada Bestower
101
Varada Bestower
102
Vasudevabhagini Sister of Vasudeva
103
Vidhya Wisdom
104
Vijaya Conqueror
105
Vindhyavasini` Resident of The Vindhyas
106
Vividayudhadhara Bearer of Various Weapons
107
Vyadhinashinis Vanquisher of Ailments
108
Yashodagarba Sambhoota Emerging From Yashoda's Womb
08/11/2009,रविवार को हमलोगों ने "पीड़ित मानव की सेवा "को अपना लक्ष्य मानकर माँ वैष्णो की कृपा से एक मंच {माँ वैष्णो देवी सेवा समिति ,पटना } की शुरुआत की है .15 लोगों की समिति ने ये निर्णय लिया है की हमलोग 16/03/2010 को माता का एक जागरण पटना में करवा कर अपने सारे लक्ष्यों को पाने की कोशिश की शुरुआत करेंगे '। इस ब्लॉग को पड़ने वाले हर लोगों का तहे दिल से इस समिति में हार्दिक स्वागत है । आपका हर एक सुझाओं हमारे प्रयासों को मजबूती देगा ।इस समिति से जुड़ने की लिए कभी भी आप फ़ोन कर सकतें हैं।
मुकेश कुमार हिसारिया ,पटना -9835093446
वैष्णो देवी की कहानी
आपने जम्मू की वैष्णो माता का नाम अवश्य सुना होगा। आज हम आपको इन्हीं की कहानी सुना रहे हैं, जो बरसों से जम्मू-कश्मीर में सुनी व सुनाई जाती है। कटरा के करीब हन्साली ग्राम में माता के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनके यहाँ कोई संतान न थी।
वे इस कारण बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। अन्य कन्याएँ तो चली गईं किंतु माँ वैष्णो नहीं गईं। वह श्रीधर से बोलीं-‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुँचा दिया। लौटते समय गोरखनाथ व भैरवनाथ जी को भी उनके चेलों सहित न्यौता दे दिया। सभी अतिथि हैरान थे कि आखिर कौन-सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? श्रीधर की कुटिया में बहुत-से लोग बैठ गए। दिव्य कन्या ने एक विचित्र पात्र से भोजन परोसना आरंभ किया। जब कन्या भैरवनाथ के पास पहुँची तो वह बोले, ‘मुझे तो मांस व मदिरा चाहिए।’ ‘ब्राह्मण के भंडारे में यह सब नहीं मिलता।’ कन्या ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया। भैरवनाथ ने जिद पकड़ ली किंतु माता उसकी चाल भाँप गई थीं। वह पवन का रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरव ने उनका पीछा किया। माता के साथ उनका वीर लंगूर भी था। एक गुफा में माँ शक्ति ने नौ माह तक तप किया। भैरव भी उनकी खोज में वहाँ आ पहुँचा। एक साधु ने उससे कहा, ‘जिसे तू साधारण नारी समझता है, वह तो महाशक्ति हैं।’ भैरव ने साधु की बात अनसुनी कर दी। माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं।
वह गुफा आज भी गर्भ जून के नाम से जानी जाती है। देवी ने भैरव को लौटने की चेतावनी भी दी किंतु वह नहीं माना। माँ गुफा के भीतर चली गईं। द्वार पर वीर लंगूर था। उसने भरैव से युद्ध किया। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा तो माता वैष्णो ने चंडी का रूप धारण किया और भैरव का वध कर दिया।भैरव का सिर भैरों घाटी में जा गिरा। तब माँ ने उसे वरदान दिया कि जो भी मेरे दर्शनों के पश्चात भैरों के दर्शन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी। आज भी प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु माता वैष्णों के दर्शन करने आते हैं। गुफा में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं।
जम्मू में स्थित माँ वैष्णो देवी की महिमा अपरम्पार है । जो भक्त्त अपनी मुरादें लेकर मैया के दाराबार में पहुँचते है । भक्त्त वत्सला माता अपने भक्तो को पुत्रवत स्नेह करती है और मुरादें पुरी करती है । कोई भी भक्त्त माँ के दरबार से निराश नही लौटता है । माँ वैष्णो देवी 'त्रिकुट पर्वत' पर महाकली लक्ष्मी, और महासरस्वती के तीन पिंडो के रूप में विराज करती है । जहा हर साल बहुत श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते है और कठिन चढाई चढ़ते है ।
पृथ्वी पर अनेको बार अशुरों के अत्याचार हुए और उनके अत्याचारों के बोझ से जब पृथ्वी धँसने लगी तब तब दिव्य रूप में देवी शक्तियों ने अवतार लिया और पृथ्वी को भार मुक्त किया है । एक बार माँ लक्ष्मी, माँ कली, और माँ सरस्वती ने त्रेता युग में दत्यो का अत्याचार का अंत करने के लिए और संत जानो की रक्षा करने के लिए अपनी समस्त शक्तियों से एक दिव्या कन्या को उत्पन करने का निशचय किया । उनके नेत्रों से निकली दिव्या ज्योति से एक कन्या प्रकट हुई उसके हाथ में त्रिशूल और ओ शेर पर सवार थी । उस कन्या ने तीनो महा शक्तियों के तरफ़ देखकर कहा - हे महा शक्तियों आपने मुझे क्यों उत्पन किया है मेरी उत्पति का क्या प्रयोजन है कृपा करके मुझे बताइए ।
तब तीनो महा देवियों ने कहा - हे कन्या धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए हमने तुम्हे उत्पन किया अब तुम हमारी बात मानकर दक्षिण भारत में रतनाकर सागर की पुत्री के रूप में जन्म लो । वहा तुम भगवन विष्णु के अंश से उत्पन होओगी आत्म प्रेरणा से धर्म हित का कार्य ।
महादेवियो की अनुमती लेकर ओ दिव्य कन्या उसी क्षण रतनाकर सागर के घर गई और उनकी पत्नी के गर्भ में स्थित हो गई । समयानुसार उस कन्या की उत्पति हुई । उस कन्या का मुखमंडल सूर्य के सामान अद्भुत और अलौकिक था । रतनाकर सागर के उस कन्या का नाम त्रिकुटा रखा । थोड़े ही दिनों में त्रिकुटा ने अपने दिव्य शक्तियों से सभी ऋषियों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया अर्थात सभी ऋषि जन उसे दिव्य अवतार मानने लगे । त्रिकुटा भगवान् विष्णु की बहुत निष्ट और लग्न से पूजा करती थी इसी कारन उसे सब लोग वैष्णवी कह कर बुलाते थे । कुछ दिन और बीत जाने के बाद त्रिकुटा ने अपने माता पिता की अनुमति लेकर ओ तप करने समुन्द्र तट पर चली गई । वहा साध्वी का वेश बनाकर एक छोटी सी कुटी में रहने लगी ।
उन्ही दिनों श्री राम की पत्नी सीता का हरण करके रावन ले गया था । सीता खोज करते हुए एक दिन श्री राम जी अपनी वानर सेना सहित वहा पधारे और उस दिव्य कन्या को तप करते हुए देखकर बोले - हे सुंदरी वह कौनसा कारन है अथवा वह कौनसा प्रोयोजन है जिस कारन तुम इतना कठोर तप कर रही हो । श्री राम के पूछने पर त्रिकुटा ने अपने नेत्र खोलकर देखा तो श्री राम जी अपने अनुज लक्ष्मण और वानर सेना सहित खड़े है । उन्हें देखकर त्रिकुटा के हर्ष के सीमा न रही । वह प्रसन्न होकर प्रभु को प्रणाम करने के उपरांत वह विनीत भावः से बोली - आपको पति रूप में प्राप्त करना ही मेरी तपस्या का कारन है । अत: मुझे अपनाकर मेरी तपस्या का फल प्रदान करने की कृपा करे । तब भगवान् श्री राम जी के कहा - हे सुमुखी इस अवतार में मैंने पत्नीव्रत होने का निसचय किया है । अत : इस जन्म में तुम्हारी अभिलाषा नही पूर्ण कर सकता किंतु मुझे प्राप्त करने के उद्देश्ये से तुमने कठिन तप किया है इसलिए तुम्हे ये वचन देता हु की की सीता सहित लंका से लौटते समय हम तुम्हारे पास भेष बदलकर आयेंगे और उस समय तुमने हमें पहचान लिए तो हम तुम्हे अपना लेंगे ।
श्री राम जी अपनी सेना सहित लंका की ओर चले गए । लंका में उनका रावन से भीषण सग्राम हुआ और अंत में रावन की मृत्यु हो गई । उसके बाद सीता की अग्नि परीक्षा लेकर पुष्क विमान पर सवार होकर आ रहे थे तब उन्होंने विमान रोक कर सीता और लक्षमण से बोले - तुम येही ठहरो हम थोडी देर में आते है उसके बाद श्री राम जी ने एक वृद्ध साधू का रूप धारण कर त्रिकुटा के सामने पहुचे, त्रिकुटा उन्हें पहचान ना सकी तब श्री राम जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर बोले- हे कन्या पूर्व कथा नुसार तुम परीक्षा में असफल रही अत : तुम कुछ काल तक तप करो कलयुग में जब मेरा 'कालिका अवतार' होगा तब तुम मेरी सहचरी बनोगी, उस समय उत्तर भारत में मानिक पर्वत पर तीन शिखर वाले मनोरमा गुफा में जहा तीन महा शक्तियो का निवास है वहां तुम भी अमर हो जाओगी। तप करो महाबली हनुमान तुम्हारे पहरी होंगे तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर तुम्हारी पूजा होंगी । तुम 'वैष्णो देवी' के नाम से तुम्हारी जगत महिमा जगत विख्यात होंगी ।
108 Names of Maa Durga
Sr. No.
Name
Meaning
1
Akashagamini Flew in The Sky
2
Arogyada Granter of Good Health
3
Asurakshayamkari Reducer of The Number of Demons
4
Ataviduhkhandhara Rakshika Protector From Ignorance And Distress
5
Ayurdas Granter of Longevity
6
Balarkasadrushakara Like The Rising Sun
7
Bandhananashini Detacher of Attachments
8
Bhaktavatsala Lover of Devotees
9
Bhayanashini Remover of Fear
10
Bhootanushruta Well-Wisher of Bhootaganas
11
Brahmacharini Seeker of Brahman
12
Chandravispardimukha Beautiful Like The Moon
13
Chaturbhuja Four-Armed
14
Chaturvakttra Four-Faced
15
Daya Compassionate
16
Devi The Diety
17
Dhanakshayanashini Controller of Wealth Decrease
18
Dhanurdharini Holder of Bow
19
Dhruti Valiant
20
Divamalya Vibhooshita Adorned With Beautiful Garlands
21
Divyambaradhara Beautifully Robed
22
Durga The Inaccessible
23
Durga Remover of Distress
24
Durga Deity Durga
25
Hri Holy Chant of Hymns
26
Indradhwaja Samabahudharini With Shoulders Like Indra's Flag
27
Jaya Victorious
28
Jyotsana Radiant Like Flames
29
Kali Dark-Complexioned
30
Kali Goddess of Death
31
Kamacharini Acting On One's Own Accord
32
Kamsavidravanakari Threatened Kamsa
33
Kantha Radiant
34
Kanttadhara Holder of Shiva's Neck
35
Kaumaravratadhara Observer of Fasts Like Young Girls Do
36
Keyurangadadharini Bejewelled With Armlets And Bracelets
37
Khadgaketaka Dharini Holder of Sword And Shield
38
Khama Embodiment of Forgiveness
39
Kirti Famed
40
Krishna Sister of Krishna
41
Krishna Dark-Complexioned
42
Krishnachhavisama Like Krishna's Radiance
43
Kulavardhini Developer of The Race
44
Kumari Young Girl
45
Kundalapurnakarna Vibhooshita Wearer of Earrings Covering The Ears
46
Mahachakradharini Holder of Chakra
47
Mahakali Wife of Mahakala
48
Mahishasuranashini Destroyer of Mahisha
49
Mamsapriya Fond of Flesh
50
Mangalya Auspicious
51
Mati Wise
52
Mayoora Pichhavalaya Wearer of Peacock-Feathered Bangles
53
Mohanashini Destroyer of Desires
54
Mruthyunashini Destroyer of Death
55
Mukutavirajita Shining With Crown Adorned
56
Nagararakshika Protector of Land
57
Nandagopakulajata Daughter of The Nandagopa Race
58
Narayanavarapriya Fond of Narayana's Boons
59
Nitya Eternal
60
Padmapatrakshi Eyes Like The Lotus Leaf
61
Pankajadharini Lotus-Holder
62
Papadharini Bearer of Others' Sins
63
Papaharini Destroyer of Sins
64
Pashadharini Holder of Rope
65
Pashupriya Fond of All Beings
66
Patradharini Vessel-Holder
67
Peenashroni Payodhara Large Bosomed
68
Prabha Dawn
69
Prasanna Cheerful
70
Pravasarakshika Protector of Travellers
71
Purnachandra Nibhanana Beautiful Like The Full Moon
72
Putrapamrityunashini Sustainer of Son's Untimely Death
73
Rajyada Bestower of Kingdom
74
Ratri Night
75
Sagaragirirakshika Protector of Seas And Hills
76
Sandhya Twilight
77
Sangramajayaprada Granter of Victory In The War
78
Sangramarakshika Protector of Wars
79
Sankarshanasamanana Equal To Sankarshana
80
Santati Granter of Issues
81
Sarvakaryasiddhi Pradayika Granter of Success In All Attempts
82
Saukhyada Bestower of Well-Being
83
Seedupriya Fond of Drinks
84
Sharanya Granter of Refuge
85
Shatrusankata Rakshika Protector From Distress Caused By Foes
86
Shikhipichhadwaja Virajita Having Peacock-Feathered Flag
87
Shilathata Vinikshibda At Birth,Slammed By Kamsa
88
Shiva Auspicious
89
Shiva Shiva's Half
90
Shree Auspicious
91
Siddhi Successful
92
Surashreshtta Supreme Among The Celestials
93
Sutada Granter of Issues
94
Trailokyarakshini Protector of The Three Worlds
95
Tribhuvaneshwari Goddess of The Three Worlds
96
Tridashapujita The Goddess of The Celestials
97
Tridivabhavayirtri Goddess of The Three Worlds
98
Vapurda Granter of Beautiful Appearance
99
Varada Granter of Boons
100
Varada Bestower
101
Varada Bestower
102
Vasudevabhagini Sister of Vasudeva
103
Vidhya Wisdom
104
Vijaya Conqueror
105
Vindhyavasini` Resident of The Vindhyas
106
Vividayudhadhara Bearer of Various Weapons
107
Vyadhinashinis Vanquisher of Ailments
108
Yashodagarba Sambhoota Emerging From Yashoda's Womb
2 Comments:
At November 9, 2009 at 11:11 PM , Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...
अपने प्रदेश बिहार में समाज सेवा के प्रति आप का संकल्प यह बताता है की आप मानविय हितों के प्रति कितने जागरूक हैं. आपका यह कदम अन्य बंधुवर के लिए प्रेरणाप्रद हो. मैं भी अपने प्रदेश के पिछडे जिलों में व्यावहारिक शिक्षा को संपुष्ट करने की दिशा में प्रयत्नशील हूँ. किसी भी प्रकार की आई.टी.(वेब मीडिया सम्बंधित) सहायता की जरुरत हो तो याद भर कर लिजयेगा.
धन्यवाद!
At November 10, 2009 at 1:08 AM , Ranjit Kumar said...
aap jaise log jinka bichar uttam ho mata unke sath hamesa rahengi. mere taraf se koi sahayata ho to hamesa aapke saath hoon.
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